विश्व जल दिवस

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विश्व जल दिवस

 (२२ मार्च २०२१)
(मूल विषय – ‘वेल्यूइंग वाटर’ अर्थात ‘जल का मूल्यांकन’)

डॉo आशुतोष उपाध्याय

परिचय

जल कृषि उत्पादन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके बिना जीव जन्तु या वनस्पति में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। जल पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था, परंतु निरंतर बढ़ती जनसंख्या के दवाब के कारण और जल के लिए कारखानों, शहरी व घरेलू माँगों में बढ़त के कारण कृषि के लिए जल की उपलब्धता दिन प्रति दिन कम होती चली जा रही है। भारत विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 2.5 प्रतिशत है परंतु इस पर विश्व की लगभग 17 प्रतिशत आबादी तथा 18 प्रतिशत पशुधन का बोझ है।

 

एक आकलन के अनुसार, देश में उपयोग हेतु उपलब्ध जल संसाधन कुल उपलब्धता का लगभग 4 प्रतिशत है। प्राचीन काल में भी जल के महत्व के पहचाना गया था जैसा कि नारद स्मृति, एकादश, 19 में दृष्टिगोचर होता है-  “जल के बिना अन्न का एक दाना भी उत्पन्न नहीं हुआ, लेकिन जलाधिक्य से अनाज सड़ भी जाते हैं। अन्न की वृद्धि के लिए बाढ़ भी उतनी ही हानिकारक है जितना दुर्भिक्ष। आज करीब अस्सी देशों में निवास करने वाली विश्व की चालीस प्रतिशत आबादी जल के गंभीर संकट से जूझ रही है। अत: जल का संरक्षण व सदुपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में यह समस्या और विकराल रूप धर लेगी और आगे आने वाली पीढ़ियाँ हमको माफ नहीं करेंगी।

 

यदि कुछ जल संरक्षण तकनीकों को कृषि में अपनाया जाये तो कम जल का सक्षम उपयोग कर अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

 

इस विषय पर मैंने काव्यात्मक शैली में अपनाने योग्य ग्यारह महत्वपूर्ण जल संरक्षण तकनीकों का चयन किया है, जिनको अपनाकर किसान भाई जल संरक्षित करते हुए अपनी उपज बढ़ा सकते हैं. यह जल संरक्षण तकनीकें हैं-

  • धान के खेत में मेडबंदी द्वारा वर्षा जल संरक्षण
  • नहर के कुशल प्रचालन, रख रखाव व सहभागिता द्वारा जल संरक्षण
  • उचित पम्पिंग सेट व भूमि का चयन करके भू जल का सक्षम उपयोग करके जल संरक्षण
  • नहर व भूजल का संयुक्त उपयोग करके जल उत्पादकता में वृद्धि
  • खारे व मीठे जल का संयुक्त उपयोग करके जल संरक्षण व जल उत्पादकता में वृद्धि
  • जल संरक्षण के लिए उचित सिंचाई विधि का चयन
  • जल संरक्षण के लिए मल्चिंग या पलवार का उपयोग
  • बलुई व केवाल मिट्टी में सिंचाई के तरीके में परिवर्तन करके जल संरक्षण
  • लेज़र लेंड लेवलिंग द्वारा जल संरक्षण
  • जल का बहु आयामी उपयोग/ समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर जल संरक्षण
  • जल वायु परिवर्तन से निपटने हेतु फसल परिवर्तन व अन्य तकनीक

 

कृषि में समयबद्धता मात्रा गुणवत्ता व प्रबंधन का महत्व

उचित  मात्रा  में  अच्छी गुणवत्ता के, हों यदि सारे आदान

और सही समय पर हो उपयोग, तो दूर होंय सारे व्यवधान

कृषि  उत्पादन में वृद्धि की, तभी  हो सकेगी राह आसान

जब ‘प्लाऊ से प्लेट’ तक, प्रबंधन पर रखोगे  सतत ध्यान

(1)

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

भारत में विश्व के भूभाग का, है लगभग ढाई प्रतिशत

यहाँ निवास करती जनसंख्या, विश्व की सत्तरह प्रतिशत

और यहाँ पशुधन भी है ज्यादा, विश्व का अठारह प्रतिशत

पर सब के पोषण को उपलब्ध जल है, मात्र चार प्रतिशत

कितना दबाव इस जल पर है, यह सबको बतलाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

जल की महिमा अपरम्पार         यदि चाहो जल रहे सतत

यह है  जीवन  का आधार         आओ मिलकर करें बचत

जल का संचय जल की पूजा       कल चाहो  अच्छा उत्पादन

जल जैसा  नहिं धन है दूजा       आज करो तुम जल संरक्षण

 

मेडबंदी द्वारा वर्षा जल का सक्षम उपयोग

किसानों ने 7.5-10 से०मी० की बजाय 20-25 से०मी० ऊँची मेड बनाकर धान के खेत में वर्षा जल संचय करके सक्षम उपयोग किया ।

  • धान के खेत में काफी दिनों तक नमी रही
  • धान में 1-2 सिंचाई की बचत देखी गयी
  • 15-20% जल की बचत हुई
  • उत्पादन में 15-20% वृद्धि हुई

 

(2)

वर्षा का पानी अनमोल, न बहने दें यूँ हीं बेकार

करें इसका भंडारण, दें तालाब पोखरों को आकार

धान का खेत भी है, वर्षा जल भंडारण का प्रकार

नौ इंच ऊंची मेड़ बनायें, करें वर्षा जल संचय साकार

धान की उपज बढ़ाकर, भूजल स्तर भी उठाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

अपने खेतों के चहुँ ओर ऊँची और मोटी मेड बनायें

   वर्षा जल संचय कर कम पटवन से अधिक उपजायें

(3)

नहर का जल भी उत्पादन वृद्धि में, देता है अद्भुत योगदान

जब होता कुशल संचालन,प्रबंधक आवश्यकता का रखता ध्यान

सही समय पर उचित मात्रा में जल, उत्पादकता वृद्धि को वरदान

कम करने को नहर जल ह्रास, उचित रखरखाव बस एक निदान

जल उपभोक्ताओं व प्रबंधकों के बीच, आपसी सहयोग बढाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

खर पतवार और सिल्ट हटायें             आउटलेट  पर  गेट  लगायें

पूरे नहर तंत्र  मजबूत बनायें             जल पर अपना नियंत्रण पायें

वितरणी समिति समूह बनायें             कम जल से अधिक उपजायें

सब मिल समस्यायें सुलझायें             सबका जीवन खुशहाल बनायें

प्रबंधन में भागीदारी अपनायें

सहभागिता का मंत्र अपनायें

(4)

भूजल ही जल का ऐसा स्रोत है, जो भूमि के नीचे छिपा हुआ है

कब, कितना, कहाँ, कैसे मिल सकेगा, इसका न सबको ज्ञान हुआ है

वैज्ञानिक बतायेंगे परीक्षण करके, कि सही भूमि का चयन हुआ है

और उचित पंप, पाइप, इंजन का जल आहरण में चुनाव हुआ है

भूजल बहुत कीमती है, इसका सक्षम उपयोग सिखलाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(5)

वर्षा विलंब से होने पर, धान भी देर से रोपा जाता

धान पकता देर से, और गेहूँ विलंब से बोया जाता

समय से बीज न बोने से, फसलोत्पादन घट जाता

रोहिणी में नर्सरी लगाने से, भूजल उपयोग हो जाता

नहर भूजल संयुक्त उपयोग को, किसानों तक पहुँचाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

बिन पानी के अन्न नहीं होता, जानते हैं यह सभी लोग

इसकी कमी या अधिकता से, फसल में लगते कई रोग

कृषि  उत्पादन में वृद्धि का, तब ही हो सकता है योग

जब वर्षा नहर एवं भूजल का, होने लगे संयुक्त उपयोग

(6)

खारे पानी से सिंचाई का मित्रों, फसलोत्पादन पर पड़ता दुष्प्रभाव

किसान फिर भी करते हैं सिंचाई, क्योंकि मीठे पानी का है अभाव

खारे और मीठे पानी को मिलाकर, सिंचाई से होगा अच्छा प्रभाव

फसलोत्पादन भी बढ़ जायेगा, और फसल का मिलेगा अच्छा भाव

खारे मीठे के संयुक्त उपयोग को, किसानों तक पहुँचाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(7)

सिंचाई के हैं कई तरीके, कहाँ कौन सा तरीका उपयुक्त रहेगा

खेत की आकृति, ढाल, मिट्टी, मौसम एवं फसल यह तय करेगा

जल का स्रोत व उपलब्धता भी, सिंचाई विधि को प्रभावित करेगा

लेवा, ड्रिप, स्प्रिंकलर व सोलर से , जल का दक्षतापूर्ण उपयोग रहेगा

कैसे करें सही सिंचाई विधि का चुनाव, यह सबको बतलाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(8)

मिट्टी में जल रहे संरक्षित, इसके करने होंगे प्रयास

वाष्पीकरण को रोकने का, मल्चिंग ही है उपाय खास

फसल अवशेष या प्लास्टिक बिछाने से, उगती नहीं है घास

पौधा भी अच्छा फलता है, क्योंकि जल रहता है आस पास

इसलिए मल्चिंग तकनीकी को, किसानों तक पहुँचाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(9)

बलुई मिट्टी में मित्रों, जल का बहुत रिसाव होता है

और केवाल मिट्टी में जल, कम अवशोषित होता है

बलुई मिट्टी में कम, पर कई बार जल देना होता है

केवाल मिट्टी में ज्यादा, पर कम बार जल देना होता है

मिट्टी की किस्म के अनुसार, जल प्रबंधन अपनाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(10)

भूमि समतलीकरण द्वारा भी, जल ह्रास कम हो जाता है

फसल को मिलता बराबर पानी, उत्पादन भी बढ़ जाता है

लेज़र लेंड लेवलिंग लाभकारी है, अनुभव तो यही बताता है

जल की बचत और उत्पादन में वृद्धि, किसको नहीं सुहाता है

तो लेज़र लेंड लेवलिंग तकनीकी, किसानों तक पहुँचाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(11)

केवल फसलोत्पादन से, जल उत्पादकता हो गई अल्प

इसको बढाने के लिए, अब तलाशने होंगे नये विकल्प

जल के कई बार उपयोग का, अब करना होगा संकल्प

मछली, मुर्गी, बत्तख पालन सह फल सब्जी उत्पादन प्रकल्प

जल के बहुआयामी उपयोग को, किसानों तक पहुंचाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

मछली सिंघाड़ा और मखाना, है जल जमाव का स्थाई निदान

आओ हम सब मिलकर सोचें, कैसे बनें यह अभिशाप वरदान

मछली सब्जी और बागवानी, जो अपनाये ये व्यवसाय

सीमित जल के सदुपयोग से, बढ़ेगी भैया उसकी आय

संभव न हो जल निकास, भंडारण का करो प्रयास

मछली मुर्गी बत्तख पालन, इससे होगा ग्राम विकास

(12)

बदल रही जलवायु भारत में, तापमान में भी वृद्धि जारी है

कहीं बाढ़ और कहीं सुखाड़, और किसान पर आपदा भारी है

इस आपदा से निपटने में, मृदा व जल संरक्षण लाभकारी है

सफल प्रशिक्षण, कुशल प्रबंधन से, दिमाग चले ज्यों आरी है

धरा आवरण, भूमि उत्पादकता, मृदा जैव कार्बन बढ़ाना होगा

जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा

कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

अधिक उत्पादन की रखें आस      दौड़ते पाने को सिखाएं चलना

      यदि याद रहें कुछ बातें खास       और  चलते  पानी को रुकना

      जल  संरक्षण  जल  संवर्धन       रुके पानी का  सही इस्तेमाल

      और  समय पर जल निकास       इससे   होगा  देश  खुशहाल

मिट्टी खाद पोषक तत्व यदि खेत में बचाना है

तो खेत से खेत जल को बिल्कुल नहीं बहाना है

नाली बनाकर ही जल को  खेत तक पहुँचाना है

यही  जल  प्रबंध नीति भैया सबको अपनाना है

      भारत  में  हैं  प्रचुर संसाधन

      फिर क्यों होता कम उत्पादन

      शायद नहीं  है कुशल प्रबंधन

      आओ करें हम मिलकर चिंतन

और अंत में हमारे संस्थान का मूल मंत्र है:

                  जन जल जमीं जानवर जंगल, हों विकसित तो जीवन मंगल

                  हो जब इनका कुशल प्रबंधन, बढ़ेगी आय और जीविकोपार्जन

                  जीविकोपार्जन वृद्धि का सपना, हो साकार यही ध्येय अपना

पूर्वी क्षेत्र में बढ़ने लगी है, अब विकास की चाह

                        हमारा संस्थान दिखा रहा, समेकित खेती की राह

Author

  • डॉo आशुतोष उपाध्याय

    प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का पूर्वी अनुसंधान परिसर पो०ऑ० बिहार वेटनरी कॉलेज, पटना- 800 014

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