खेती में पानी की उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिए तकनीक

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खेती में पानी की उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिए तकनीक

पवन जीत, प्रेम कुमार सुन्दरम, अनिल कुमार सिंह और आशुतोष उपाध्याय

परिचय

चीन, भारत और यू.एस.ए. दुनिया का सबसे बड़ा सिंचाई करने वाला देश है। चीन का 70% और भारत का 50% अनाज सिंचाई के माध्यम से उत्पादित किया जाता है। भारत में लगभग 60 मिलियन हेक्टेयर कृषियोग भूमि सिंचित हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि भारत देश में कुल जल खपत का 69% कृषि उद्देश्य के लिए, 21% औद्योगिक उद्देश्यों के लिए और10% आवासीय उपयोग के लिए किया जाता है। पानी का सबसे ज्यादा खपत कृषि में सबसे ज्यादा होने के बाबजूद कृषि में पानी की सिंचाई दक्षता बहुत अच्छी नहीं है। सिंचाई दक्षता में सुधार का अर्थ है कि जल संसाधनों पर कम तनाव, भूजल और सतही जल संसाधनों के लिए पानी और पोषक तत्वों का कम नुकसान, उत्पादन और समग्र मुनाफे को बनाए रखने / सुधारने के दौरान सिंचाई निवेश को कम करना, और संभावित रूप से अधिक मात्रा में पानी की एक मात्रा के साथ उपयोग करना है। हमारे देश का लगभग 160 मिलियन हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है। कुल खेती योग्य भूमि का लगभग 39 मिलियन हेक्टेयर भूजल से सिंचित है और लगभग  22 मिलियन हेक्टेयर भूमि नहरों द्वारा सिंचित और लगभग दो तिहाई खेती अभी भी मानसून पर निर्भर है। सिंचाई दक्षता को विभिन्य तरीकों से परिभाषित कर सकते हैं: सिंचाई प्रणाली का प्रदर्शन, पानी के इस्तेमाल की एकरूपता, और फसल की सिंचाई के लिए प्रतिक्रिया

(1) सिंचाई प्रणाली का प्रदर्शन

इस प्रणाली के तहत सिंचाई के पानी को जलाशय या कुओं से पंप करके नहरों या पाइप लाइनों के माध्यम से खेत तक पहुंचाया जाता है। इसके तहत हम जल बहाव दक्षता, इस्तेमाल करने की दक्षता, संचयन दक्षता, समग्र सिंचाई दक्षता और प्रभावी सिंचाई दक्षता के बारे में पता कर सकते हैं।

(i) जल संवहन दक्षता: इस प्रणाली के तहत सिंचाई के पानी स्रोत से पानी बहाव की मात्रा और खेत या क्षेत्र तक पहुंचने वाले पानी की मात्रा के बीच अनुपात को दर्शा सकते हैं।

(ii) जल इस्तेमाल करने की दक्षता: यह पोधों की जड़ क्षेत्र में संग्रहीत सिंचाई पानी की मात्रा और खेत या क्षेत्र तक पहुंचने वाले पानी की मात्रा के बीच अनुपात को सकते हैं।

(iii) जल संचयन दक्षता: यह जड़ क्षेत्र में संग्रहीत सिंचाई पानी की मात्रा और सिंचाई से पहले आवश्यक पानी की मात्रा के बीच अनुपात को दर्शाता है।

(iv) समग्र सिंचाई दक्षता: यह भौतिक प्रणाली में समग्र पानी बहाव की दक्षता को प्रदर्शित करता है।

(2) पानी के इस्तेमाल की एकरूपता

यह बेहतर सिंचाई पद्धति के लिए कुशलता पूर्वक और फायदेमंद रूप से उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा को दर्शाता है। अनुप्रयुक्त पानी की एकरूपता सिंचाई दक्षता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। यह सिंचाई पानी वितरण प्रणाली, मिट्टी स्थलाकृति, मिट्टी द्रव-चालित, रिसन विशेषताओं और द्रव-चालित विशेषताओं (जैसे दबाव, प्रवाह दर, आदि) की विधि से संबंधित कई कारकों पर निर्भर करता है।

(3) फसल की सिंचाई के प्रति प्रतिक्रिया

यह फसल के विभिन्न वृद्धि अवस्था (प्रारंभिक अवस्था, विकाशील अवस्था, मध्य अवस्था और गत अवस्था) पर निर्भर करता है। यह जल उपयोग दक्षता और सिंचाई जल उपयोग दक्षता जैसी मापदंडों को चिन्हित करता है।

सिंचाई दक्षता का कम होने के कारण

सिंचाई दक्षता कम होने के बहुत से कारण है:

(I) कृषि योग खेतों को पानी की आवश्यकता नहीं होने पर भी पानी का निरंतर बहाव।

(II) पानी के स्रोत से लेकर सिंचित योग खेत तक पानी की आपूर्ति में कमी।

(III) सिंचाई से पहले मिट्टी में नमी की मात्रा का मापन नहीं किया जाना।

(IV) अनुचित जल स्तर के कारण कृषियोग क्षेत्र में खराब जल वितरण।

(V) अत्यधिक ढलान के कारण ज्यादा पानी बहाव।

(VI) मिट्टी की भौतिक विशेषताओं के आधार पर पानी का उपयोग का अभाव।

सिंचाई दक्षता में सुधार करने के उपाय

(I) पानी के संसाधनों जैसे भूजल और सतही जल, के लिए पानी और पोषक तत्वों के नुकसान के प्रभाव को कम करके।

(II) फ़सल उत्पादन और समग्र मुनाफे को बनाए रखने / सुधारने के लिए अधिक पानी इस्तेमाल को कम करके।

(III) संभावित रूप से पानी के कम से कम मात्रा के साथ एक बड़े क्षेत्र को सिंचित करके।

सिंचाई दक्षता में सुधार के तकनीकी उपाय

(1)कुशल सिंचाई अभ्यास का अवलोकन: जैसा की हम जानते हैं की फसल में जल आवश्यकता फसल की वृद्धि अवस्था के अनुसार भिन्न होती है। फसल की भौतिक स्थिति के आधार पर भी सिंचाई की विधि हर फसल में भिन्न होती है। उपयुक्त तकनीकों की सूचना और शिक्षा, उचित सिंचाई विधियों पर किसानों के ज्ञान और कौशल की तरक़्क़ी करने के लिए जरूरी है। किसानों के खेतों में अनुकूल परीक्षण और प्रदर्शन, अनुकूल जल प्रबंधन तकनीक, कृषिस्तर पर कुशल सिंचाई प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए सभी सिंचाई परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर उठाए जाने की आवश्यकता है। विभिन्न सतही सिंचाई विधियों की क्षेत्र दक्षता को नीचे तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।

तालिका 1: सतही सिंचाई विधियों की क्षेत्र दक्षता

सिंचाई विधि

क्षेत्र दक्षता (%)
प्राप्य श्रेणी औसत
ग्रेडेड फ़रो 75 50-75 65
लेवल फ़रो 85 65-85 80
श्रेणीबद्ध सीमा 80 50-80 65
स्तर बेसिन 90 80-90 85

 (2) सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का संवर्धन: छिड़कन सिंचाई प्रणाली और टपकन सिंचाई प्रणाली सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के अन्तर्गत आते है। छिड़कन सिंचाई प्रणाली में पानी के दबाव के साथ पाइप के एक नेटवर्क के माध्यम से फसलों पर छिड़क दिया जाता है। टपकन सिंचाई प्रणाली उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए उपयुक्त है। इस प्रणाली के द्वारा नली तंत्र के माध्यम से पौधों की जड़क्षेत्र में प्रतिदिन आवश्यक मात्रा में पानी दिया जाता है। इसलिए वाहनया वितरण में पानी का कोई नुकसान नहीं होता है। मिट्टी की सतह से वाष्पीकरण नुकसान भी बहुत कम होता है क्योंकि पानी केवल पौधों की जड़ क्षेत्र को ही दिया जाता है।

 (3) फसल विविधीकरण: देश के आर्द्र और उप-आर्द्र क्षेत्रों में सिंचाई परियोजनाएं चावल की फसल पर आधारित हैं। इस फसल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है और गीली मिट्टी नमी व्यवस्था को प्रधानता दी जाती है। जाहिर है की चावल, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के बारिश के पानी को अधिक हद तक उपयोग करने के लिए उपर्युक्त है। इन कठिनाइयों को दूर करने और कृषि को लाभकारी और टिकाऊ बनाने के लिए धान से फसल के उचित मूल्य, गैर धान फसलों में विविधीकरण के लिए जाना जरूरी है।

 (4) शुष्क सिंचाई: सिंचित कृषि में जल उपयोग की आर्थिक दक्षता बढ़ाने के तरीके के रूप में सबसे अनुकुल विधि शुष्क सिंचाई है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकतम उपज के लिए पानी की लागत को आवश्यक स्तर से नीचे लाना है। सर्वोत्तम उपज के लिए आवश्यक पानी से कम  पानी के इस्तेमाल के साथ कुछ हद तक कम उपज प्राप्त की जा सकती है, लेकिन पर्याप्त रूप से अधिक मात्रा में पानी के साथ अधिक क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है। सिंचाई के पानी की प्रति इकाई उच्च पैदावार के लिए जल उपयोग दक्षता को अधिकतम करने का यह एक अच्छा तरीका है।

(5) पल्स सिंचाई: यह एक छोटी अवधि के लिए सिंचाई करने का एक अच्छा सिंचाई तकनीक है।, फिर एक और छोटी अवधि, और पूरे सिंचाई पानी लागू होने तक इस ऑन-ऑफ चक्र को दोहराता है। यह एक हालिया अवधारणा है की मिट्टी को संतृप्त करने और पौधों की पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह एक अच्छा तरीका है।

(6) कम ऊर्जा सुव्यतता साधित्र सिंचाई (LEPA): इस सिंचाई प्रणाली में पानी को स्प्रिंकलर की भुजा से निकलने वाली बूंद ट्यूबों से फसलों में पहुंचाया जाता है। LEPA 95-98% जल दक्षता को प्राप्त कर सकता है। चूंकि यह विधि कम दबाव पर चलती है, इसलिए यह परंपरागत प्रणालियों की तुलना में ऊर्जा लागत में 20 से 50% बचाती है।

 (7) सतह और भूजल का संयुग्मित उपयोग: इस प्रणाली के तहत फसल जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सतह पानी केसाथ भूजल पानी का भी उपयोग करते है। यह जल आपूर्ति प्रबंधन की प्रमुख रणनीतियों में से एक है जिसे बेसिन के भीतर जल संसाधन विकास, प्रबंधन और संरक्षण को अनुकूलित करने और जलभृत के कृत्रिम रिचार्ज को अनुकूलित करता है। संयुग्मित उपयोग के दो दृष्टिकोण हैं:

  • विभिन्न स्रोतों से प्राप्त पानी का उपयोग फसल में करने के साथ-साथ संयुग्मित पानी का उपयोग।
  • विभिन्न स्रोतों से पानी का पृथक उपयोग तथा पानी का उपयोग के लिए पानी के एक स्रोत पर निर्भरता।

सिंचाई दक्षता एक क्षेत्र, खेत, बेसिन सिंचाई, या पूरे वर्षा जल संचयन सिंचाई करने के लिए आवश्यक सिंचाई प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण उपाय है। सिंचाई दक्षता और इसकी परिभाषा का मूल्य सिंचित कृषि के सामाजिक विचारों और हमारी बढ़ती दुनिया की आबादी को पूरा करने के लिए आवश्यक उच्च गुणवत्ता, प्रचुर मात्रा में खाद्य आपूर्ति में इसके लाभ के लिए महत्वपूर्ण है। शुष्क सिंचाई के तहत उच्च खेती सिंचाई दक्षता लेजर स्तर वाले क्षेत्र और उचित सिंचाई अनुसूची के माध्यम से हासिल की जा सकती है।

निष्कर्ष

सिंचाई दक्षता में बढ़ोतरी का मतलब यह है की सिंचाई साधन के काम करने के प्रदर्शन में बृद्धि करना। आज हमारे पास ऐसे-ऐसे सिंचाई के साधन है जिसका सिंचाई दक्षता लगभग 85-95% तक है जैसे टपक सिंचाई, कम ऊर्जा सुव्यतता साधित्र सिंचाई इत्यादि। । इसके अलावा हमारे पास ऐसे-ऐसे तकनीकी उपकरण या साधन है जिसके उपयोग से कृषि के लिए जल की बढ़ती माँग को भी कम किया जा सकता है जैसे सूखे क्षेत्र के लिए उन्नत किस्म का विकास, फसल विविधीकरण, रेनवाटर हार्वेस्टिंग एवं भूमि और जल संरक्षण तकनीक इत्यादि। फसल विविधीकरण, शुष्क सिंचाई, पल्स सिंचाई, कम ऊर्जा सुव्यतता साधित्र सिंचाई एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली उच्च सिंचाई दक्षता के साधन है। जैसा की हम जानते है की भूजल की घटती गुणवत्ता और सतह जल की बढ़ती माँग हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है।  इसका निवारण केवल इस दोनों उपस्थित संसाधन के संयुग्मित उपयोग के द्वारा ही संभव है।  इस प्रणाली के तहत जल की गुणवत्ता एवं सिंचाई के लिए उपर्युक्त जल की बढ़ती माँग को भी पूरा किया जा सकता है।  साथ ही साथ इस प्रणाली के तहत सिंचाई करने से सिंचाई दक्षता भी बढ़ती  है। अंततः सिंचाई की दक्षता में बढ़ोतरी तभी संभव है, जबतक की हम शुद्ध जल का उपयोग उपर्युक्त ढंग से उपर्युक्त काम के लिए नहीं करते हैं। 

Authors

  • डा० पवन जीत

    वैज्ञानिक भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का पूर्वी अनुसंधान परिसर पो०ऑ० बिहार वेटनरी कॉलेज, पटना- 800 014

  • डा० प्रेम कुमार सुंदरम

    वैज्ञानिक भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का पूर्वी अनुसंधान परिसर पो०ऑ० बिहार वेटनरी कॉलेज, पटना- 800 014

  • डा० अनिल कुमार सिंह

    निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर

  • डॉo आशुतोष उपाध्याय

    प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का पूर्वी अनुसंधान परिसर पो०ऑ० बिहार वेटनरी कॉलेज, पटना- 800 014

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