ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणाली: शहरी क्षेत्रों में सतत कृषि उत्पादन का जरिया
Vertical farming system: A Means of Sustainable Agricultural Production in Urban Areas
आरती कुमारी एवं जटोथ वीरन्ना
सार
वैश्विक स्तर पर बढ़ती आबादी और रोजगार की तलाश में बड़ी तादाद में शहरी क्षेत्रों में पलायन के कारण ऊर्ध्वाधर खेती की उपयोगिता शहरी क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही है। हम ऊर्ध्वाधर खेती को अपनाकर न केवल शहरी क्षेत्रों में खाद्यान आपूर्ति कर सकते है बल्कि लम्बी दुरी से सब्जिओ के निर्यात में संलग्न परिवहन खर्च को भी कम करने में सक्षम हो पायेगें । इसमें कोई संदेह नहीं की यह शहरी क्षेत्रों में सतत कृषि उत्पादन का एक बेहतर विकल्प है।
प्रस्तावना
बढ़ती जनसँख्या और वैश्वीकरण के कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया की आबादी 2050 तक 9 बिलियन तक पहुंच जाएगी, जिसमें से 70% शहरी क्षेत्रों में केंद्रित होंगें । यह परिवर्तन बदलती जलवायु के साथ धरती के संसाधनों पर भी दबाव डालेगा जिससे विशेष रूप से भोजन आपूर्ति की समस्या बढ़ जाएगी। इसके अलावा भारत में भी तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, उदहारण के तौर पर जहाँ 2010-11 में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि 101.15 हे. था, वहीं 2015-16 में घट कर 1.08 हे. हो गया और भविष्य में और भी कम होने की प्रबल संभावना है। विशेष रूप से, भवन-आधारित शहरी क्षेत्रों में शहरी आबादी बढ़ती जा रही है और कृषि योग्य भूमि तेजी से कम हो रही है, इसी सन्दर्भ में खाद्य उत्पादन में एक मूलभूत परिवर्तन की समीक्षा की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण से ऊर्ध्वाधर कृषि शहरी क्षेत्रों में शहरी कृषि का एक बड़े पैमाने पर कृषि विस्तार हेतु लाभप्रद साबित हो सकता है। ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणाली मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में छोटी जोत भूमि वाले किसानों के लिए कृषि संसाधनों के कुशल उपयोग का एक अभिनव तरीका है। हालांकि, इस शब्द का उपयोग सब्जी और जड़ी-बूटियों से लेकर फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला के व्यावसायिक उत्पादन के लिए व्यक्तिगत या सामुदायिक-पैमाने पर विशाल गगनचुंबी इमारतों पर उगाने के लिए किया गया है। किन्तु वर्त्तमान समय में बढ़ती वैश्विक आबादी के कारण खाद्यान पूर्ति की समस्या से निपटने और प्रति वर्ग इकाई में अधिकतम उत्पादन के दृष्टिकोण से इसकी उपयोगिता बढती जा रही है। ऊर्ध्वाधर(खड़ी) खेती के माधयम से कम जोत वाले खेतिहर किसानों को आय बढ़ाने में काफी लाभ मिल सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है की इसमें रासानिक खादों और कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग होता है। इस शोध के माध्यम से आम जनता शहरी क्षेत्रों में अपने घरों की छतों पर उपयोग में आने वाली सब्जिओं को उगाने में सक्षम हो रहे हैं।
ऊर्ध्वाधर खेती (खड़ी खेती) करने का तरीका
क्षेत्रीय स्तर पर खड़ी खेती करने के लिए सबसे पहले एक बहु-स्तरीये ढांचे तैयार कर सबसे निचले हिस्से में पानी से भरा टैंक रखा जाता है। टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रख पाइप के द्वारा उचित मात्रा में पानी और जरूरत पोषक तत्व पहुंचाया जाता है। इसमें कहीं कहीं ल इ डी बल्ब के माधयम से कृत्रिम प्रकाश भी प्रदान किया जाता है, जो पौधों की वृद्धि में मदद करते हैं । यह पानी की आवश्यकता को कम करने के साथ-साथ बढ़ती उपज और काफी कम भूमि क्षेत्र में फसलों की एक बड़ी विविधता की खेती करने की क्षमता को बढ़ाता है। ऊर्ध्वाधर कृषि की कुछ अलग बागवानी विधियां हैं (चित्र 1)। इसमें सबसे प्रमुख हाइड्रोपोनिक्स है, जिसमें जड़ें पोषक तत्वों के साथ जल में डूब जाती हैं।इसके प्राथमिक लाभों में से एक यह है कि यह मिट्टी से संबंधित खेती की समस्याओं (कीड़े,कवक, और बैक्टीरिया की समस्या )को कम करता है । साथ हीं साथ पोषक तत्वों के स्तर और पीएच को नियंत्रित करने का एक आसान तरीका प्रदान करती है। इसलिए, हाइड्रोपोनिक विधि के परिणामस्वरूप अधिक उत्पादन और बेहतर पैदावार हो सकती है। एक अन्य विधि एरोपोनिक्स है। यह शुष्क भूमि और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खेती के तरीकों में सुधार करने की क्षमता रखता है क्योंकि पौधों को बिना मिट्टी और बहुत कम पानी के साथ कृत्रिम वातावरण में उगाया जाता है। हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपॉनिक सिस्टम के बीच प्रमुख अंतर यह है कि हाइड्रोपोनिक्स पानी को बढ़ते हुए माध्यम के रूप में उपयोग करता है जबकि एरोपोनिक्स पानी के बजाय पोषक संसाधनों का उपयोग करता है, इसलिए इसे कंटेनरों या पानी रखने के लिए ट्रे की आवश्यकता नहीं होती है। एक और महत्वपूर्ण प्रणाली एक्वापोनिक्स है । एक्वापोनिक्स एक्वाकल्चर का ऐसा संयोजन है, जिसमें मछली और अन्य जलीय जानवर और हाइड्रोपोनिक्स पद्धति से पौधे आसानी से उगाये जाते हैं। इस प्रणाली में पौधों को जलीय जानवरों के निर्वहन को खाद्य रूप में खिलाया जाता है। बदले में, पौधे मछलियों के जल को शुद्ध करते हैं। इसके अलावा मछलियों का मल पौधों को जैविक खाद प्रदान करने के अलावा रोगाणुओं पौधों के पोषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परिणामस्वरुप यह एक्वाकल्चर और बागवानी के बीच सहजीवी संयोजन का उदहारण प्रस्तुत करता है।
ऊर्ध्वाधर खेती के फायदे
ऊर्ध्वाधर खेती साल भर फसलों को उगाने की क्षमता प्रदान करता है ,क्यूंकि ये मौसम पर निर्भर नहीं करता है।एक और लाभ यह है कि इसके माधयम से शहरी क्षेत्रों में लोग ऊर्ध्वाधर खेतों का निर्माण कर अपनी आवश्यकतानुसार सब्जियों को ऊगा सकते है जो परिवहन लागत को कम करने के साथ प्रदूषण भी कम करता है।निंयत्रित तरीकों से पानी का उपयोग होने के कारण यह पानी की भी बचत करता है।परम्परागत खेती की तुलना में ऊर्ध्वाधर खेती कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता को कम करता है । इसके साथ ही रासायनिक खादों का उपयोग नहीं होने के कारण जैविक खेती को बढ़ावा देता है (चित्र 2)। संयुक्त राष्ट्र (एफएओ) के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, ऊर्ध्वाधर खेती प्रणाली एक महीने में 150 किलो सब्जियां उगाने के लिए पारंपरिक खेती की तुलना में 75 प्रतिशत कम कच्चे माल और सिर्फ 60 वाट बिजली की खपत करती है। इसके साथ ही इस मात्रा को प्राप्त करने के लिए जहाँ ऊर्ध्वाधर खेती के लिए सिर्फ 6 वर्ग मीटर की जगह चाहिए, जबकि पारंपरिक खेती के लिए कम से कम 72 वर्ग मीटर भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होती है। और तो और पारंपरिक खेती के तहत 300-400 लीटर की तुलना में रीसाइक्लिंग के कारण 1 किलो सब्जियों का उत्पादन करने के लिए सिर्फ 12 लीटर पानी की आवश्यकता ऊर्ध्वाधर खेती में पड़ती है।
भारत में ऊर्ध्वाधर खेती की संभावनाएं
भारत में ऊर्ध्वाधर खेती (खड़ी खेती ) अभी शुरुआती दौर में हैं, जिसके अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र या अन्य दूसरी कृषि संस्थानों द्वारा सफल प्रयोग देखने को मिल रहा है। इसके अलावा कई मेट्रो शहर जैसे नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु मिटटी रहित खेती कर ऊर्ध्वाधर खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में कई अग्रि स्टर्ट अप जैसे बार्टन ब्रीज (गुडगाँव) , फ्यूचर और एक्वा फार्म्स (चेन्नई) , बिटमैंटिस इन्नोवेशंस (बेंगलुरु ) उच्च गुणवत्ता वाले सब्जिओं को उगाकर बड़े शहरों में खाद्यआपूर्ति कर रहे हैं। साथ ही साथ ये किसानो के बीच जागरूकता फ़ैलाने और तकनिकी जानकारी उपलब्ध कराने में भी अदुतीय भूमिका निभा रहे हैं।
निष्कर्ष
भारत में बढ़ती आबादी के कारण विशेषतः शहरी क्षेत्रों में अधिक खाद्यान आपूर्ति , कम होती हुई प्रति व्यक्ति भूमि व जलवायु परिवर्तन कृषि प्रणालियों पर संकट का विषय है , अतएव किसानो को समृद्ध बनाने व बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन व पोषण आपूर्ति हेतु ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणाली ही शहरी क्षेत्रों में बेहतर विकल्प है। यह न केवल शहरी क्षेत्रों में अधिक उत्पादन व आर्थिक लाभ प्रदान करती है बल्कि पर्यावरण को कम से कम क्षति पहुंचाती है। भारत में अधिकांश किसान वैज्ञानिक पद्धति से की जाने वाली ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणालितों के बारे में अनभिज्ञ हैं, अतः इन उन्नत कृषि प्रणालियों के बारे में किसानो को बड़े पैमाने पर जागरूक करने की आवश्यकता है।