नौतपा : सामान्य जन जीवन एवं कृषि पर प्रभाव

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नौतपा : सामान्य जन जीवन एवं कृषि पर प्रभाव

डॉ अनिल कुमार सिंह

 

नौतपा, भीषण गर्मी से सराबोर नौ दिनों का वह विशेष काल खंड होता है जब सम्पूर्ण श्रृष्टि को उर्जामान करने वाला सूर्य ज्येष्ठ मास में रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है। इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप भारत के उत्तरी भूभाग पर अत्यधिक गर्मी का प्रकोप हो जाता है।

नौतपा का ज्योतिषीय एवं पौराणिक महत्व
ज्योतिष के अनुसार, नौतपा का समय तब आता है जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है। रोहिणी नक्षत्र चंद्रमा का नक्षत्र है, और जब सूर्य इस नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो चंद्रमा की शीतलता कम हो जाती है। इस कारण से, धरती पर अत्यधिक गर्मी होती है। कहते हैं कि ज्येष्ठ के महीने में ही हनुमान जी की मुलाकात भगवान श्रीराम से हुई थी।

नौतपा और उसके प्रभाव
तापमान वृद्धि
नौतपा के दौरान तापमान बहुत बढ़ जाता है और गर्मी के रिकॉर्ड टूट सकते हैं। इस समय पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पहले से ही भीषण गर्मी का अनुभव हो रहा है। राजस्थान और गुजरात में भी स्थिति खराब है। यहां तक कि शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भी गर्मी का असर देखा जा रहा है।

नौतपा का समय
नौतपा तब लगता है जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है। यह ज्येष्ठ मास में होता है, और इस साल 24 मई से 1 जून तक रहेगा। इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं, जिससे तापमान बहुत बढ़ जाता है।

नौतपा न तपे तो क्या होता है?
दो मूसा, दो कातरा, दो तीड़ी, दो ताय।
दो की बादी जळ हरै, दो विश्वर दो वाय।।

यदि नौतपा के दौरान पहले दो दिन लू न चले तो चूहों की संख्या बढ़ जाती है। अगले दो दिन लू न चले तो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट कातरा बढ़ जाते हैं। तीसरे दिन से दो दिन लू न चले तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होते। चौथे दिन से दो दिन लू न चले तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरते। इसके बाद दो दिन लू न चले तो सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं। और आखिरी दो दिन लू न चले तो आंधियां अधिक चलती हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं।

नौतपा के दौरान क्या करें और क्या न करें ?
क्या न करें?
1. दिन के समय यात्रा से बचें: गर्मी के कारण लू लगने का खतरा होता है।
2. भारी और तैलीय भोजन से बचें: अधिक मिर्च, मसाले और तेल वाली चीजें खाने से परहेज करें।
3. मांस और मदिरा का सेवन न करें: इससे शरीर में गर्मी बढ़ सकती है।
4. मांगलिक कार्यों से बचें: इस दौरान तूफान और आंधी की संभावना अधिक होती है।
5. बैंगन का सेवन ना करे: इस दौरान बैंगन खाने से स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

क्या करें?
1. हल्का भोजन करें: पेट को हल्का रखने के लिए आसानी से पचने वाला खाना खाएं।
2. ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं: शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए।
3. पक्षियों के लिए पानी रखें: मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर रखें ताकि पक्षियों को राहत मिले।
4. राहगीरों को पानी पिलाएं: इस दौरान लोगों को पानी पिलाने से पुण्य मिलता है।
5. शिवलिंग पर जल चढ़ाएं: धार्मिक दृष्टिकोण से यह शुभ माना जाता है।
6. भगवान हनुमान की पूजा करें: ज्येष्ठ मास में भगवान हनुमान की पूजा का विशेष महत्व होता है।

लोक कहावतें और वर्षा संकेत
घाघ और भड्डरी लोक कहावतों और कविताओं में बता देते थे कि बारिश होने या नहीं होने के क्या संकेत हैं. ऐसे दूरदर्शी लोगों में एक नाम है घाघ का जिन्हें कृषि पंडित भी कहा जाता है. आज हम उनकी कहावतों के जरिये जानेंगे कि उन्होंने बारिश और मॉनसून के क्या-क्या संकेत दिए.

1. रोहिणी नक्षत्र में बारिश
रोहिनि बरसे मृग तपे, कुछ दिन आद्रा जाय।
कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।
घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! अगर रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा नक्षत्र तपे और आर्द्रा के कुछ दिन बाद वर्षा हो, तो पैदावार अच्छी होती है कि कुत्ते भी चावल (भात) खाते-खाते ऊब जाएँगे|

2. ज्येष्ठ मास में गर्मी
जेठ मास जो तपै निरासा।
तो जानौ बरखा की आसा।।
घाघ जी के कहने का तात्पर है कि यदि ज्येष्ठ मास में बहुत गर्मी पड़े, तो भरपूर वर्षा निश्चित होती है।

3. दिन में गर्मी और रात में ओस
दिन में गर्मी रात में ओस, कहें घाघ बरखा सौ कोस
महाकवि घाघ कहते हैं, यदि दिन की गर्मी से अगर बादल नहीं बने या रात में ओस पड़ने से पूरी नमी निकल जाए तो बारिश नहीं होगी|

4. पुरवा नक्षत्र में पुरवा हवा
जब पुरवा, पुरवा रस पाई, तब गड़ही में नाव चलाई
इसका अर्थ हुआ कि अगर पुरवा नक्षत्र में पुरवा हवा चले, तो यह निश्चित है कि बहुत अधिक बारिश होगी| इतनी अधिक बारिश होगी कि छोटे गड्ढों में भी नाव चलने की स्थिति बन जाएगी.

5. रोहण, मृगशिरा अर आद्रा सूं बरखा री भविसवाणी
राजस्थान और उत्तर भारत में मान्यताओं के अनुसार, रोहिणी, मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्र बारिश की भविष्यवाणी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन नक्षत्रों के माध्यम से किसानों और ग्रामीणों ने बारिश और मौसम के पूर्वानुमान के संकेत विकसित किए हैं।

रोहिणी, मृगशिरा, और आर्द्रा नक्षत्रों के माध्यम से बारिश की भविष्यवाणी करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। ये नक्षत्र मौसम के पूर्वानुमान और कृषि के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं। इन नक्षत्रों का सही समय पर सही तरीके से अध्ययन और समझ किसानों को खेती की योजना बनाने में मदद करता है। घाघ और भड्डरी की कहावतें इस पारंपरिक ज्ञान को संजोए रखने का एक तरीका हैं, जो आज भी प्रासंगिक और उपयोगी हैं। इन कहावतों से कृषि और मौसम के बारे में जानकारी मिलती है, जो किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।

जलवायु परिवर्तन का नौतपा पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन ने वैश्विक मौसम प्रणालियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, और इसका नौतपा पर भी असर देखा जा सकता है। नौतपा, जो ज्येष्ठ मास में सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ शुरू होता है और 9 दिनों तक अत्यधिक गर्मी के लिए जाना जाता है, इस अवधि में तापमान में और अधिक वृद्धि देखी जा सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण इस दौरान आने वाले बदलाव और उनके प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं:

1. अत्यधिक गर्मी: जलवायु परिवर्तन के कारण सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है, जिससे नौतपा के दौरान तापमान और भी अधिक बढ़ सकता है। इस समयावधि में पहले से ही उच्च तापमान के साथ, अतिरिक्त गर्मी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और हीटवेव्स का कारण बन सकती है।

2. मौसम की अनिश्चितता : जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न अनियमित हो गए हैं। इसका मतलब है कि नौतपा के दौरान अपेक्षित गर्मी और सूखे के पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे कभी-कभी अप्रत्याशित बारिश या आंधियां आ सकती हैं।

3. जल स्रोतों पर प्रभाव एवं जल संकट: बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोतों का तेजी से सूखना संभव है। नौतपा के दौरान बढ़ी हुई गर्मी से जलाशयों, नदियों और तालाबों में जलस्तर और अधिक गिर सकता है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो सकता है।

4.फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव: अत्यधिक गर्मी और जल की कमी फसलों की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इससे फसलें सूख सकती हैं या उनकी गुणवत्ता में कमी आ सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता प्रभावित होगी।

5. स्वास्थ्य पर प्रभाव: अत्यधिक गर्मी से हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। विशेषकर वृद्ध, बच्चे और पहले से बीमार लोग अधिक प्रभावित हो सकते हैं।

6. पर्यावरण/वायु गुणवत्ता पर प्रभाव: बढ़ते तापमान के साथ वायु गुणवत्ता भी खराब हो सकती है। उच्च तापमान से वायुमंडल में प्रदूषकों की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

7. लू (हीटवेव्स) की आवृत्ति और तीव्रता : जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव्स की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है। नौतपा के दौरान इन हीटवेव्स का प्रभाव और अधिक घातक हो सकता है।

बचने के उपाय
1. जल संरक्षण: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए जल संरक्षण के उपाय अपनाना महत्वपूर्ण है। वर्षा जल संचयन और जल प्रबंधन की तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए।

2. ग्रीन कवर: हरियाली बढ़ाने के प्रयास करना चाहिए ताकि वातावरण को ठंडा रखा जा सके और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सके।

3. स्वास्थ्य जागरूकता: गर्मी से बचने के उपायों और हाइड्रेशन के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है।

4. वातावरण अनुकूलन: गर्मी से बचने के लिए शीतलन केंद्रों की स्थापना, सार्वजनिक स्थानों पर छाया और पानी की व्यवस्था, और कार्यस्थलों पर तापमान नियंत्रित करने के उपाय करना चाहिए।

निष्कर्ष
नौतपा के दौरान अत्यधिक गर्मी होती है, इसलिए विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। इस समय हल्का भोजन, पर्याप्त पानी का सेवन, और धार्मिक कार्य करने से राहत मिल सकती है। लोक कहावतें और ज्योतिष गणनाएं इस मौसम के प्रभावों और कृषि पर इसके प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव नौतपा जैसी परंपरागत मौसम घटनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इन प्रभावों को समझकर और आवश्यक कदम उठाकर हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने पर्यावरण तथा समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

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