अनिल कुमार सिंह , रजनी कुमारी, आशुतोष उपाध्याय एवं पवनजीत
लंपी स्किन डिजीज गौवंशीय पशुओ में होने वाला एक संक्रामक रोग है, जिसे ढेलेदार त्वचा रोग भी कहा जाता है। कैप्रि पॉक्स नाम का वायरस इस रोग का कारक एजेंट है। यह रोग बहुत तेजी से एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। वर्त्तमान परिदृश्य में, यह बीमारी भारत सहित विभिन्न देशो के अनेक प्रान्तों में फैल चुकी है, एवं वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ यानी WOAH की सूची में सम्मिलित है।
लंपी स्किन डिजीज का फैलाव
लंपी एक संक्रामक बीमारी है। UN फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन यानी FAO के अनुसार, लंपी बीमारी मच्छर, मक्खियों, जूं और पिस्सू जैसे जीवों के जरिए फैलने वाली एक चेचक जैसी बीमारी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ये बीमारी जानवरों की आवाजाही से भी फैलती है। एक पशु से दूसरे पशु में लंपी वायरस फैलने की दर 45% है, लेकिन मौत की दर 5 से 10% है।वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ यानी WOAH के अनुसार इस बीमारी में मृत्युदर 5% तक है।
लंपी बीमारी के प्रमुख लक्षण
तेज बुखार और शरीर पर गांठें होना इस बीमारी के सबसे बड़े लक्षण हैं। बीमार पशुओं में बांझपन भी हो सकता है और इससे उनकी दूध उत्पादन क्षमता भी घट जाती है।संक्रमित मवेशी में लक्षणों का घटना चक्र क्रम इस प्रकार होता है- इंफेक्शन होने के बाद लक्षण दिखने में 4-7 दिन का समय लगता है, जिसे इन्क्यूबेशन पीरियड कहते हैं। शुरुआत में गायों या भैसों की नाक बहने लगती है, आंखों से पानी बहता है और मुंह से लार गिरने लगती है। इसके बाद तेज बुखार हो जाता है, जो करीब एक हफ्ते तक बना रह सकता है। फिर जानवर के शरीर पर 10-50 मिमी गोलाई वाली गांठें निकल आती हैं। साथ ही उसके शरीर में सूजन भी आ जाती है। जानवर खाना बंद कर देता है, क्योंकि उसे चबाने और निगलने में परेशानी होने लगती है। इससे दूध का उत्पादन घट जाता है। कई बार लंपी पीड़ित गायों की एक या दोनों आंखों में गहरे घाव हो जाते हैं, जिससे उनके अंधे होने का खतरा रहता है। कई बार चेचक के घाव पूरे पाचन, श्वसन और शरीर के लगभग सभी आंतरिक अंगों में हो जाते हैं। ये लक्षण 5 हफ्ते तक बने रहते हैं। इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है।
लंपी रोग का उपचार एवं बचाव
इसके लिए कोई खास एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। इसे फैलने से रोकने का एक मात्र उपाय संक्रमित गाय-भैंस को कम से कम 28 दिन के लिए आइसोलेट करना है। इस दौरान उनके लक्षणों का इलाज होते रहना चाहिए। सबसे ज्यादा ध्यान शरीर पर होने वाली गांठों का रखना चाहिए, क्योंकि इससे दूसरे इंफेक्शन और निमोनिया हो सकता है। संक्रमित जानवरों की भूख बनाए रखने के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी दर्दनिवारक जैसे पैरासिटामॉल का इस्तेमाल किया जाता है। कैप्रिपोक्स जीनस के अन्य वायरस के वैक्सीन जैसे शीप-पॉक्स एवं गोट- पॉक्स वैक्सीन भी लंपी रोग के लिए प्रतिरक्षा प्रदान करती है। हाल के दिनों में भारत में राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार एवं भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के सहयोग से लंपी प्रोवैक नामक स्वदेशी टीका विकसित किया गया है। इस टीके द्वारा लंपी रोग की रोकथाम में मदद मिलेगी।
लंपी रोग से जुड़े आर्थिक प्रभाव
लंपी रोग से पशुओ में दूध उत्पादन की कमी, वज़न का गिरना , गर्भपात , बांझपन एवं मृत्यु इत्यादि के लक्षणों के कारण पशुपालको को बहुत नुक्सान उठाना पड़ता है, एवं इससे अर्थव्यवस्था, स्थानीय आजीविका एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
निष्कर्ष: लंपी स्किन डिजीज गोवंशीय पशुओ क एक विषाणु जनित रोग है, जिसका बचाव पशुओ की आवाजाही पर नियंत्रण, टीकाकरण , संक्रमित पशुओ क उपचार एवं बेहतर प्रबंधन द्वारा किया जा सकता है।