भारत की पहचान
अनिल कुमार सिंह
एक ही है भारत-एक ही है पहचान, है तिरंगा जिसकी शान ।
हजारो वर्षों का इतिहास, वेद पुराण है बडे महान ॥
त्याग- तपस्या और बलिदान, पूर्वजो का करे गुणवान ।
सब धर्मो का तीर्थ महान, आर्यावर्त कहो या हिंदुस्तान ॥
एक ही है भारत…
वैदिक युग मे सिंधु लाया, मानव को सभ्यता सिखाया ।
जानवर को इंसान बनाया, खेती का श्रीगणेश कराया ॥
जीवन को भी शुलभ बनाया, जीवन दर्शन मार्ग दिखाया ।
मानवता का पाठ पढ़ाया, जीवन को कृतार्थ बनाया ॥
एक ही है भारत…
वीर-भूमि मरुस्थल पश्चिम मे, पूरब की छटा निराली है ।
है शीश हिमालय उत्तर मे, दक्षिण मे सागर चरणो मे ॥
विविध बहुला भरी पडी है, माँ भारती के आंचल मे ।
केसर की धरती है कश्मीर, केरल है मशालो का बीर ॥
एक ही है भारत…
गंगा माँ जैसे है निकली, भागिरथ प्रयासों से ।
कृषि भी विकसीत वैसे ही है, ॠषि परशार के प्रयासों से ॥
क्या कभी हम नकार पायेगे, पूर्वजो के आविष्कारों को ।
वारमिहिर, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, धनवंतरी के अहसानो को ॥
एक ही है भारत…
प्रकृत पुजारी वैदिक मानव, आज ना जाने कितने दानाव ।
नये नये इंसान बन थे, सपनो को भी पर लगे थे ॥
नित नये धर्म प्रचारक आये, अपनी बाते हमे समझाये ।
लोभ व लालच, माया जाल, बुद्धि भ्रष्ट और काम तमाम ॥
एक ही है भारत…
गौरव गाथा भरी पडी है, वीरो के बलिदानो से, शांति के संदेशो से ।
हिंद विरासत बची रही है, नाना झंझावातो से, रक्त रंजित अत्याचारो से ॥
आतातायी, मार- काट कर, सोने की चिड़ियाँ को लूटा ।
कुछ तो आये यही रह गये, इस धरती मे चमन हो गये ॥
एक ही है भारत…
चाहे बातें अटक से कटक की हो, या हो केरल से कश्मीर की ।
परिपूर्ण है धरती भारत की, सम्पूर्ण है धरती भारत की ॥
मंदिर-मस्जिद या हो गुरुद्वारा, चहु ओर फैले भाईचरा ।
हिंदुस्थन का एक ही नारा, वसुधैव – कुटुम्बकम हो ध्येय हमारा ॥
एक ही है भारत…
————————————————–
—————-