अनिल कुमार सिंह , प्रेम कुमार सुन्दरम एवं संजय कु० पटेल
जैविक कृषि, एक जीवन शैली है, या यू कहे कि एक समूल जीवन पद्धति है, जोकि हमे नैसर्गिक रूप से प्राकृतिक ढंग से दैनिक कृषि क्रियाओं का सम्पादन करती है | हम जैविक खेती को अपना कर ना केवल मानव जाति को भयंकर बिमारियो के प्रकोप से बचाने के साथ–साथ प्राकृतिक एवम् पर्यावरण का भी संरक्षण करेगे, अपितु अधिकाधिक लाभ भी कमा पायेगे |
परिचय
जैविक कृषि” कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के प्रयोग ना करने या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। जैविक कृषि एक सदाबहार कृषि पद्धति है, जो पर्यावरण की शुद्धता, जल व वायु की शुद्धता, भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाये रखने वाली, जल धारण क्षमता बढ़ाने वाली, धैर्यशील एवं कृत संकल्पित होते हुए रसायनों का उपयोग आवश्यकता अनुसार कम से कम करते हुए कृषक को कम लागत से दीर्घकालीन स्थिर व अच्छी गुणवत्ता वाली पारम्परिक कृषि संचालन व्य्वस्था है।
क्यों जरूरी है जैविक कृषि ?
बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह–तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान–प्रदान के चक्र को (इकोलाजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है। साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है, तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। पिछले कुछ समय से रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के अन्धाधुन्ध व असन्तुलित प्रयोग का कुप्रभाव ना केवल मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ्य पर हुआ है, बल्कि इसका कुप्रभाव पानी, भूमि एंव पर्यावरण पर भी स्पष्ट दिखाई देने लगा है। प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप कृषि की जाती थी। जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान–प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहता था। जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होते थे।
तालिका 1: भारत मे कुल प्रमाणिक जैविक कृषि का क्षेत्रफल (हेक्टेयर) | |
राज्य | क्षेत्रफल (हेक्टेयर) |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह | 321.28 |
आंध्र प्रदेश | 12325.03 |
अरुणाचल प्रदेश | 71.49 |
असम | 2828.26 |
बिहार | 180.60 |
छत्तीसगढ़ | 4113.25 |
दिल्ली | 0.83 |
गोवा | 12853.94 |
गुजरात | 46863.89 |
हरयाणा | 3835.78 |
हिमाचल प्रदेश | 4686.05 |
जम्मू और कश्मीर | 10035.38 |
झारखंड | 762.30 |
कर्नाटक | 30716.21 |
केरल | 15020.23 |
लक्षद्वीप | 895.91 |
मध्य प्रदेश | 232887.36 |
महाराष्ट्र | 85536.66 |
मणिपुर | 0.0 |
मेघालय | 373.13 |
मिजोरम | 0.0 |
नगालैंड | 5168.16 |
ओडिशा | 49813.51 |
पांडिचेरी | 2.84 |
पंजाब | 1534.39 |
राजस्थान | 66020.35 |
सिक्किम | 60843.51 |
तमिलनाडु | 3640.07 |
त्रिपुरा | 203.56 |
उत्तर प्रदेश | 44670.10 |
उत्तरांचल | 24739.46 |
पश्चिम बंगाल | 2095.51 |
कुल | 723039.00 |
जैविक विधि से बाजरा की खेती | जैविक विधि से केला उत्पादन | करेले का जैविक विधि से उत्पादन |
प्रमुख जैविक खाद
प्रमुख पादप सुरक्षा पदार्थ
जैविक पध्दति द्वारा बनाई गई कृषि रोग नियंत्रक
जैविक कृषि के मार्ग में बाधाएं
भूमि संसाधनों को जैविक कृषि से रासायनिक में बदलने में अधिक समय नहीं लगता लेकिन रासायनिक से जैविक में जाने में समय लगता है। शुरूआती समय में उत्पादन में कुछ गिरावट आ सकती है, जो कि किसान सहन नहीं करते है। अतरजैविक कृषि अपनाने हेतु उन्हें अलग से प्रोत्साहन देना जरूरी है।आधुनिक रासायनिक कृषि ने मृदा में उपस्थिति सूक्ष्म जीवाणुओं को लगभग नष्ट कर दिया हैए अत उनके पुन: निमार्ण में 3- 4 वर्ष लग सकते हैं।
जैविक कृषि हेतु योजनाये
भारत सरकार विभिन्न योजनाओं कार्यक्रमों के माध्यमों से जैविक कृषि को बढ़ावा दे रही है स्थायी कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन, परम्परागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन, तिलहन एवं पाम तेल पर राष्ट्रीय मिशन, एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संचालित जैविक कृषि पर नेटवर्क कार्यक्रम आदि प्रमुख योजनाएए जैविक कृषि को बढ़ावा दे रही हैं।
जैव उत्पादो का प्रमाणीकरण एवं चिन्हीकरण
उत्पादो के लिए प्रमाणीकरण जहाँ बाजार को सुलभ बनाता है, वहीं ग्राहकों के लिए सुरक्षा व गुणवत्ता की गारंटी है। हमारे देश में अनेक उत्पादो पर एग्मार्क का चिन्ह ISI मार्क है ठीक उसी प्रकार इंडिया आर्गेनिक मार्क जैविक उत्पादो पर प्रमाणीकरण के पश्चात् लगाया जाता है।
जैव उत्पादन पंजीकरण प्रक्रिया
जैविक खेती के द्वारा विभिन्न फसलें, फल, सब्जी एवं औषधीय फसलें आदि उगाये जा रहे हैं तथा शनै:-शनै: उनका क्षेत्र विस्तार भी हो रहा है। कृषकों को जैविक उत्पादन का उचित मूल्य मिल सके, इसलिए जैविक–विधि से उत्पादित उत्पाद के पंजीकरण की व्यवस्था किया जाना आवश्यक है। हमारे देश में मानको का निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्डों के आधार पर होने की प्रक्रिया चल रही है। संभवत: इसमें देर होने की संभावना है। इन परिस्थितियों में कृषकों के हित में यह आवश्यक होगा कि प्रदेशों में जैविक उत्पाद के पंजीकरण की व्यवस्था तत्काल शुरू कर दी जाए ताकि अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के निर्धारण तक हमारे गांवो के विशुध्द जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण पर खरे उतरें और उसके साथ ही उनके विक्रय की व्यवस्था हो।
पी. जी. एस. जैविक चिन्ह एवम उनका प्रयोग
पी. जी. एस. जैविक चिन्ह तभी लगाया जा सकता है जब वह उत्पाद उत्पादक समूह या उत्पादक किसान द्वारा या उसकी देखरेख में पैक किया गया हो। चिन्ह का प्रयोग उत्पाद की केवल उतनी ही मात्रा पर किया जाना चाहिये जिसकी जानकारी प्रादेशिक परिषद को दी गई है और वेबसाइट पर डाली गई है।बिना विशिष्ट पहचान कोड के चिन्ह का प्रयोग नहीं किया जायेगा। प्रमाणीकृत जैविक तथा परिवर्तन कालावधि उत्पादों पर अलग–अलग चिन्हों का प्रयोग किया जायेगा।
पी जी एस चिन्ह | |
पी. जी. एस. जैविक : पूर्णतया प्रमाणित जैविक उत्पाद | पी. जी. एस. हरित : परिवर्तन कालवधि उत्पाद |
वर्तमान भारत में जैविक कृषि परिदृश्य
देश के अंदर जैविक कृषि का महौल पैदा करने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में जैविक कृषि नीति तैयारी की गई। इसकी अनेकानेक योजनाये जैविक कृषि हेतु मील का पत्थर सावित हुई। राष्ट्रीय जैविक कृषि परियोजना के अंतर्गत जैविक प्रबंधन के प्रचार प्रसार तथा जैविक कृषि क्षेत्र के विस्तार हेतु अनेक योजनायें शुरू की गई हैं। पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम देश का प्रथम पूर्णतया जैविक राज्य बन चुका है। देश में जैविक कृषि, कृषि मंत्रालय के दायरे में आता है जबकि जैविक कृषि के उत्पादों का निर्यात वाणिज्य मंत्रालय के अधीन है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों की सहायता का प्रावधान है।
तालिका 2 : जैविक कृषि पर आँकड़े उपलब्ध कराने वाले विश्व के प्रमुख देश भूभाग (लाख हेक्टेयर) | ||
वर्ष | जैविक कृषि मे संलग्न देशो की संख्या | क्षेत्रफल (लाख हेक्टेयर) |
1999 | 77 | 11.0 |
2000 | 86 | 14.9 |
2001 | 97 | 17.3 |
2002 | 100 | 19.8 |
2003 | 110 | 25.7 |
2004 | 121 | 29.9 |
2005 | 122 | 29.2 |
2006 | 135 | 30.1 |
2007 | 140 | 31.5 |
2008 | 155 | 34.4 |
2009 | 161 | 36.3 |
2010 | 161 | 35.7 |
2011 | 162 | 37.5 |
2012 | 164 | 37.6 |
2013 | 170 | 43.2 |
2014 | 172 | 43.7 |
तालिका 3 : जैविक कृषि मे संलग्न्न राष्ट्र एवम भूभाग | |
राष्ट्र | भूभाग (लाख हेक्टेयर) |
आस्ट्रेलिया | 17.2 |
अर्जेंटीना | 3.1 |
यूएसए | 2.9 |
चीन | 1.9 |
स्पेन | 1.7 |
इटली | 1.4 |
उरग्वे | 1.3 |
फ्रांस | 1.1 |
जर्मनी | 1.0 |
कनाडा | 0.9 |
तालिका 4 : वर्ष 2014 मे विश्व के 10 बडे जैव उत्पादक देश | |
राष्ट्र | जैविक पदार्थ उत्पादक (संख्या) |
भारत* | 650000 |
युगांडा | 190552 |
मेक्सिको* | 169703 |
फिलीपींस | 165974 |
तंजानिया* | 148610 |
इथियोपिया* | 135827 |
तुर्की | 71472 |
पेरू | 65126 |
परागुआ | 58258 |
इटली | 48662 |
*2013 |
जन जागरूकता
सरकार को गाँवों में प्रदर्शनी आदि जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से जैविक कृषि के बारे में ब्लॉक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है। किसान भाईयो को प्रयोगशालाओ और जैविक कृषि के उत्पादो के विपणन के बारे में भी जागरूक बनाने की आवश्यकता है। जैविक कृषि के प्रमाणन की प्रक्रिया के सरलीकरण एवम कृषि विज्ञान केन्द्रों कृषि विश्वविद्यालयो तथा आई सी ए आर संसथानो में जैविक कृषि पर अनुसंधान तथा फसलों के अवशिष्ट के उचित इस्तेमाल को बढ़ावा देकर जैविक कृषि को किसानों के बीच लोकप्रिय बनाया जा रहा है।
तालिका 5 : वर्ष 2014 मे विश्व जैविक कृषि सूचकांक | |
सूचकांक | विश्व |
प्रमाणित जैविक कृषि पर सूचना देने वाले देश (संख्या) | 172 (2014) |
जैविक कृषि भूमि (मिलियन हेक्टेयर) | 43.7 (2013) |
जैविक कृषि का कुल कृषि भूमि मे हिस्सेदारी (%) | 0.99% (204) |
गैर–कृषि जैविक क्षेत्र (मुख्य रूप से जंगली क्षेत्र) | 376 लाख हेक्टेयर (2014) |
जैव पदार्थ उत्पादक (संख्या) | 23 लाख (2013) |
जैव बाजार का आकार ($) | $ 80 अरब (2014) |
प्रति व्यक्ति खपत ($) | $ 11 |
जैविक नियम पालन कर्ने वाले देश (संख्या) | 87(2015) |
IFOAM सहयोगियों की संख्या | 177 देशो से 784 सद्स्य (2014) |
निष्कर्ष
भारत आज भी जैविक खादय उत्पादन है, यह बहुत ही सुखद बात है | देखा जाय तो जैविक कृषि कम लागत में ही मृदा की उर्वरता एवं कृषको की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत सहायक है । वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक कृषि की विधि और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा कृषि करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषकों को अधिक आय प्राप्त होती है।