कृषि ड्रोन के उपयोग से खेती होगी आसान

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कृषि ड्रोन के उपयोग से खेती होगी आसान

जया सिन्हा,  संजय कुमार पटेल  और प्रियंका रानी

 

परिचय: 

खेती में आधुनिक कृषि यंत्रों की महत्ता बढ़ती ही जा रही है। देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये किसान ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा हैं ।ड्रोन माध्यम से कृषि कर किसानों को खेती में आधुनिकरण किया जा रहा है। जिससे की कृषि में सरलता और सुगमता लाई जा सके। जिसके इस्तेमाल से किसानों को काफी मदद मिल सकती है। फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों और पोषक तत्त्वों के छिड़काव के लिये  किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा हैं । दुनियाभर में कृषि कार्यों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ड्रोन का उपयोग बढ़ रहा है। ड्रोन से बड़े क्षेत्रफल में महज कुछ मिनटों में कीटनाशक, खाद या दवाओं का छिड़काव किया जा सकता है। इससे न सिर्फ लागत में कमी आएगी, बल्कि समय की बचत भी होगी। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सही समय पर खेतों में कीट प्रबंधन किया जा सकेगा। ड्रोन एक मानव रहित छोटा विमान है जिसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है या यह स्वायत्त रूप से उड़ सकता है।इसमें एक जीपीएस आधारित नेविगेशन सिस्टम, कई तरह के सेंसर और एक नियंत्रक होता है। यह बैटरी आधारित ऊर्जा पर काम करता है। नियंत्रक से इसे उड़ाया और नियंत्रित किया जाता है। वर्तमान बजट में खेती में ड्रोन तकनीकी को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया गया है। यह तकनीक किसानों को फसलों के समुचित प्रबंधन में दक्षता और सटीकता प्रदान कर सकती है।

खेतीकिसानी में कृषि ड्रोन के उपयोग से कई फायदे हो सकते हैं:

सिंचाई निगरानी : यदि बड़े क्षेत्र में फसल  सिंचाई हो रही है, तो ड्रोन की मदद से निगरानी में मदद मिल सकती है। इसमें मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर उन क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं, जो बहुत शुष्क हैं। इससे किसान को पूरे क्षेत्र में बेहतर सिंचाई में सहायता मिल सकती है। ड्रोन सर्वेक्षण से फसल की जल ग्रहण क्षमता में सुधार लाया जा सकता है। साथ ही, सिंचाई के दौरान संभावित रिसाव के बारे में भी जानकारी हासिल की जा सकती है। उदाहरण के लिए किसान टाइम-लैप्स फोटोग्राफी के माध्यम से पता लगा सकते हैं कि उनकी फसल का कौन-सा हिस्सा ठीक से सिंचित नहीं हो रहा है।

फसल स्वास्थ्य की निगरानी : फसल में बैक्टीरिया आदि के बारे में शुरुआती दौर में ही पता लगाना मुश्किल होता है, मगर कृषि ड्रोन के लिए यह आसान है। ड्रोन देख सकता है कि कौन से पौधे अलग-अलग मात्रा में ग्रीन लाइट प्रदर्शित करते हैं। यह डाटा फसल स्वास्थ्य को ट्रैक करने के लिए मल्टीस्पेक्ट्रल इमेज बनाने में मदद करता है। इसके बाद लगातार निगरानी से फसलों को बचाने में मदद मिल सकती है।

मृदा विश्लेषण : ड्रोन सर्वेक्षण किसानों को उनके खेत की मिट्टी की स्थिति के बारे में जानकारी एकत्र करने की सुविधा देता है। मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर बीज रोपने के पैटर्न, पूरे क्षेत्र की मिट्टी का विश्लेषण, सिंचाई और नाइट्रोजन-स्तर के प्रबंधन के लिए उपयोगी डाटा को हासिल करने में मदद कर सकता है। सटीक 3डी मैपिंग से किसान अपने खेत की मिट्टी की स्थिति का अच्छी तरह से विश्लेषण कर सकते हैं।

फसल नुकसान का आकलन : ड्रोन की मदद से फसल के नुकसान का आकलन भी किया जा सकता है। मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर और आरजीबी सेंसर के साथ आने वाले कृषि ड्रोन खर-पतवार, संक्रमण और कीटों से प्रभावित क्षेत्रों का पता लगा सकते हैं। फिर डाटा के अनुसार संक्रमण से लड़ने के लिए रसायनों का सही मात्रा का उपयोग कर लागत को कम कर सकते हैं।

कीटनाशकों का छिड़काव : ड्रोन के माध्यम से फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करना आसान हो गया है। यह हानिकारक रसायनों से मानव संपर्क को भी सीमित करता है। कृषि ड्रोन इस कार्य को पारंपरिक तरीके की तुलना में बहुत तेजी और बेहतर तरीके से अंजाम दे सकता है। आरजीबी सेंसर और मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर वाले ड्रोन समस्याग्रस्त क्षेत्रों की सटीक पहचान और उपचार कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में टिड्डियों का खतरा बढ़ा है। टिड्डियों का दल फसलों, पेड़ों व अन्य प्रकार के पौधों को बर्बाद कर देता है। हाल के वर्षों में टिड्डियों के झुंड द्वारा भारत के कई क्षेत्रों विशेषकर राजस्थान में फसलों पर आक्रमण देखा गया। हजारों हेक्टेयर में लगी फसलों को प्रभावित करने वाले टिड्डियों का हमला किसी आपदा से कम नहीं है। इससे बचने के लिए अधिकांश देश आर्गेनोफास्फेट रसायनों पर निर्भर होते हैं। ड्रोन 15 मिनट में करीब 2.5 एकड़ में कीटनाशक का छिड़काव कर सकता है। ऐसे में ड्रोन इस समस्या का हल हो सकता है।

पांपशुधन ट्रैकिंग : ड्रोन सर्वेक्षण से किसान न केवल अपनी फसलों पर नजर रख सकते हैं, बल्कि अपने मवेशियों की गतिविधियों पर भी नजर रख सकते हैं। थर्मल सेंसर तकनीक खोए हुए जानवरों को खोजने में मदद करती है।च गुना तेज होता है।

संसाधनों का इष्टतम उपयोग: कृषि ड्रोन किसान को विभिन्न संसाधनों- बीज, पानी, उर्वरक, कीटनाशक का इष्टतम उपयोग करने में सक्षम बनाता है। एक खेत के सभी क्षेत्रों को एक जैसा उपचार देने की बजाय आवश्यकता अनुसार उपचार देने से उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग लिया जा सकता है। किसान तीव्रता से खेत का मुआयना करके समस्याग्रस्त क्षेत्रों जैसे संक्रमित फसलों/ अस्वस्थ फसलों, मिट्टी में नमी के स्तर आदि पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और आवश्यकता-आधारित सटीक स्थानीय परिचार कर सकता है।

बीमा का दावा करने में उपयोगी: किसान ड्रोन से किसी भी फसलीय नुकसान का आंकलन और सबूत दोनों इकट्ठा कर सकता है और बीमा कंपनी के पास नुकसान-भरपाई का दावा मजबूती के साथ रख सकता है। ड्रोन से प्राप्त जीपीएस आधारित सटीक और भरोसेमंद जानकारी को झुठलाना किसी भी व्यक्ति हेतु आसान नहीं रहता है।

ड्रोन के विभिन्न प्रकार और उनकी कार्यप्रणाली:

मल्टीरोटर ड्रोन:

यह ड्रोन का सबसे सरल रूप है जिसका बाजार में सबसे ज्यादा आधिपत्य है मल्टी-रोटर ड्रोन सबसे आसान और सस्ते हैं। वे स्थिति और फ़्रेमिंग पर अधिक नियंत्रण भी प्रदान करते हैं, और इसलिए वे हवाई फोटोग्राफी और निगरानी के लिए उपयुक्त हैं। उन्हें मल्टी-रोटर कहा जाता है क्योंकि उनके पास एक से अधिक मोटर होते हैं, अधिक सामान्य रूप से ट्राइकोप्टर (3 रोटार), क्वाडकोप्टर (4 रोटर), हेक्साकॉप्टर (6 रोटर) और ऑक्टोकॉप्टर (8 रोटर) होते हैं। मल्टीरोटर ड्रोन की  फिक्स्ड-विंग ड्रोन की तुलना में, रेंज और स्पीड दोनों कम होती है।

फिक्स्ड विंग ड्रोन:

फिक्स्ड विंग ड्रोन हवाई जहाज की तरह ही काम करते हैं, ऊपर रहने के लिए लिफ्ट और ड्रैग का उपयोग करते हैं; अधिकांश फिक्स्ड विंग ड्रोन में केवल एक प्रोपेलर होता है। नतीजतन, फिक्स्ड विंग ड्रोन में 20 मिनट या उससे अधिक समय तक हवा में रहने की क्षमता के साथ लंबी बैटरी लाइफ होती है।फिक्स्ड विंग्स भी रोटरी ड्रोन की तुलना में अधिक गति तक पहुंच सकते हैं, और जब इसे लंबी बैटरी लाइफ के साथ जोड़ा जाता है, तो यह फिक्स्ड विंग ड्रोन को अधिक क्षेत्रफल कवर करने की अनुमति देता है।हालांकि, हवाई अड्डे के रनवे के समान, निश्चित पंखों को उतरने के लिए जगह की आवश्यकता होगी। उन्हें जमीन पर फिसल कर उतरने के लिए डिजाइन किया जा सकता है।फिक्स्ड विंग का हाइब्रिड संस्करण एक हैलीकाप्टर की तरह उड़ान भरकर और लैंडिंग करके इस मुद्दे को खत्म कर देता है, लेकिन एक फिक्स्ड विंग की तरह उड़ान भरता है।

 

ड्रोन तकनीक का लाभ  प्राप्त करें:

बाजार में, कृषि ड्रोन की लोडिंग कैपेसिटी और अंतिम प्रयोग के आधार पर कीमत आमतौर पर 3-10 लाख तक हो सकती है है। किसी छोटे किसान के लिए इसे खरीदना जेब पर भारी पड़ता है लेकिन कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से इसे किराए पर लेकर वह इस प्रौद्योगिकी का फायदा उठा सकता है। बड़े किसान, कस्टम हायरिंग सेंटर या कृषि संस्थान इसे वर्तमान बजट में प्रस्तावित सरकारी आर्थिक सहायता का प्रयोग करके इसे खरीद सकते हैं। सरकार ने देश में ही ड्रोन के विकास को बढ़ावा देने के लिए इसके आयात पर भी रोक लगा दी है। भारत में भी सरकार कृषि क्षेत्र में तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दे रही है, ताकि बेहतर उपज के साथ-साथ किसानों की आय में भी वृद्धि हो। महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों के किसान खेती-किसानी के कार्यों में ड्रोन का उपयोग करने लगे हैं।

सारांश:

खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी किसानों को खेती से नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में ड्रोन जैसी टेक्नोलॉजी के जरिए की गई प्रिसिजन फार्मिंग देश के किसानों को बेहतर विकल्प दे सकती है। ड्रोन का इस्तेमाल कर किसान लागत में कमी और समय की बचत कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।

संदर्भ:

[1] जया सिन्हा , राजीव श्रीवास्तव  ,  मोहित शर्मा और  प्रियंका रानी ,कृषि में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का अनुप्रयोग और लाभ,कृषि जागरण ,अंक ०७,जुलाई २०२२ .पी.पी १४-१८ .

[2] एस. चौधरी, वी. गौरव, ए. सिंह, एस. अग्रवाल,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर स्वायत्त फसल सिंचाई प्रणाली इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एडवांस्ड टेक्नोलॉजी।, 8 (5S) (2019), पीपी। 46-51

[3] https://kisansamadhan.com/crops-production/kharif-crops/millet-cultivation/

[4] https://innovativefarmers.in/

Authors

  • डा० जया सिन्हा

    सहायक प्राध्यापक, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रद्योगिकी महाविद्यालय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा,समस्तीपुर

  • डा० संजय कुमार पटेल

    एसोसिएट प्रोफेसर और हेड (फार्म मशीनरी एंड पावर इंजीनियरिंग) कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रद्योगिकी महाविद्यालय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा,समस्तीपुर

  • प्रियंका रानी

    पीएचडी स्कॉलर, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रद्योगिकी महाविद्यालय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा,समस्तीपुर

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