अविजित सिंह
मैं कुछ करना चाहता हूँ
इन फैली हुयी झोलियों को भरना चाहता हूँ
स्वयं के लिए जीता रहा अब तक
अब दूसरों के लिए मरना चाहता हूँ।
भुखमरी से तस्करी तक की दूरी नापना चाहता हूँ
‘ईवनिंग न्यूज ‘वेच रहे इस नंगे बालक की सुबह आँकना चाहता हूँ
भूखी माँ के भूखे बच्चे की आँखों में झाँकना चाहता हूँ
पटरियों के सहारे यह जो कोयला बीन रहा है
जूठन के टुकड़ों को कुत्तों से छीन रहा है।
हद से बढ़ जायेगी अब पेट की आग या तो खुद जल मरेगा
या जमाने को कर देगा राख,
फिर किस आधार पर आशा करें हम
आज का यह बालक कल देशभक्त सुभाष या गाँधी बन जाएगा
इनमें से किसी का भी तो बचपन ऐसा नहीं रहा है।
मेरा अनुभव तो यह कहता है आज अगर यह भूखा है
तो कल अपराधी बन जायेगा मैं कल से डरना चाहता हूँ।
मैं कुछ करना चाहता हूँ।
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